‘Gen Z’ के आगे झुकी ओली सरकार! नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों के बाद सोशल मीडिया पर लगा बैन हटा
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार को अपने विवादास्पद सोशल मीडिया प्रतिबंध को वापस लेना पड़ा है। ऑनलाइन गुस्से से शुरू हुई ये लहर देखते ही देखते सड़कों तक पहुंच गई, जहाँ हजारों युवा—खासतौर पर जेन ज़ी—ने इंटरनेट की आज़ादी की मांग की। युवाओं की आवाज़ दबाने की कोशिश ने उल्टा हाल के वर्षों का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन खड़ा कर दिया।

📱 प्रतिबंध क्यों नहीं चला?
(Nepal Social Media Ban Withdrawn) सरकार का कहना था कि सोशल मीडिया से गलत सूचना, नफरत फैलाने वाले संदेश और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है।
लेकिन इस कदम ने युवाओं में समर्थन की जगह डर, गुस्सा और विद्रोह पैदा कर दिया।
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फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक और एक्स (पूर्व ट्विटर) सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि युवाओं की पहचान, रोज़गार और शिक्षा का माध्यम हैं।
इंफ्लुएंसर्स, डिजिटल उद्यमी, फ्रीलांसर और छात्र सभी ने इस प्रतिबंध को अपने भविष्य पर हमला माना।
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🔥 विरोध प्रदर्शन हुए हिंसक
प्रतिबंध के खिलाफ काठमांडू, पोखरा, बिराटनगर समेत कई शहरों में प्रदर्शन हुए।
हजारों लोगों ने “Don’t Silence Us!” और “Digital Freedom is Our Right” लिखे बैनर लहराए।
पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए लाठीचार्ज, आंसू गैस और गिरफ्तारियां कीं, जिससे प्रदर्शन हिंसक हो गए।
कई लोग घायल हुए, संपत्ति का नुकसान हुआ और राजधानी ने लोकतंत्र आंदोलन के बाद सबसे बड़े युवा प्रदर्शनों को देखा।
अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने भी प्रतिबंध की निंदा की और सरकार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करने की मांग की।
👩💻 Gen Z की जीत
लगातार कई दिनों तक चले प्रदर्शनों के बाद, ओली सरकार को सोशल मीडिया से प्रतिबंध हटाना पड़ा (Nepal Social Media Ban Withdrawn)।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार ने स्वीकार किया कि यह कदम “जल्दबाज़ी” था और अब वे कड़े साइबर कानून बनाने पर ध्यान देंगे।
युवाओं के लिए यह सिर्फ नीति में बदलाव नहीं, बल्कि एक बड़ी जीत थी।
नेपाल के जेन ज़ी ने साबित कर दिया कि वे सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि लोकतंत्र गढ़ने वाले सक्रिय नागरिक हैं।
उनकी एकजुट आवाज़ ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।
🌍 नेपाल के लिए इसका क्या मतलब है?
यह घटना बताती है कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर रोक लगाने की कोशिशों को दुनिया भर में खासकर युवाओं से जबर्दस्त विरोध मिलता है।
नेपाल में यह राज्य शक्ति और युवा सशक्तिकरण के बीच कमजोर कड़ी को भी उजागर करता है।
अब ओली सरकार को संतुलित रवैया अपनाना होगा:
✅ डिजिटल साक्षरता अभियान से गलत सूचना पर रोक
✅ सोशल मीडिया कंपनियों से मिलकर जिम्मेदार उपयोग के नियम बनाना
✅ सोशल मीडिया को खतरा नहीं, अवसर मानना
यह कदम नेपाल के लोकतंत्र को और मजबूत कर सकता है,
क्योंकि अब युवाओं की आवाज़ दबेगी नहीं, बल्कि सुनी जाएगी।
✊ सीमाओं से परे संदेश
प्रतिबंध हटाने का फैसला पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक मजबूत संदेश है: Gen Z को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
स्मार्टफोन और सोशल नेटवर्क्स ने उन्हें पहले से कहीं ज़्यादा संगठित होने, विरोध दर्ज करने और जवाबदेही तय कराने की ताकत दी है।
प्रधानमंत्री ओली के लिए यह याद दिलाने जैसा है कि डिजिटल युग में नेतृत्व का मतलब सुनना भी है।
Gen Z के लिए यह इस बात का सबूत है कि उनकी आज़ादी की लड़ाई अभी शुरू हुई है।
🌐 आखिरी शब्द
नेपाल की युवाओं के आगे ओली सरकार का झुकना दिखाता है
डिजिटल युग में सामूहिक ताकत कितनी प्रभावशाली हो सकती है।
जो कदम एक प्रतिबंध के रूप में शुरू हुआ था,
वही अब नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में ऐतिहासिक मोड़ बन गया है।
संदेश साफ है: अगर Gen Z की आवाज़ छीनोगे, तो वे और ज़ोर से गरजेंगे।