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ट्रंप चाहते हैं कि भारत का ऑयल बिज़नेस रूस से हटकर अमेरिका की ओर जाए: असली खेल है व्यापार

वैश्विक कूटनीति की जटिल बुनावट में एक बार फिर तेल चर्चा का केंद्र बन गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि वे चाहते हैं कि भारत का ऑयल बिज़नेस रूस से हटकर अमेरिका की ओर जाए। अक्सर युद्ध, गठबंधन और भू-राजनीतिक रणनीतियों की बातें सुर्खियों में छा जाती हैं, लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल दिखावा है। असल मुद्दा युद्ध नहीं बल्कि व्यापार है।

भारत का ऑयल बिज़नेस

अटकी हुई ट्रेड डील और बढ़ता तनाव

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, तकनीक और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अच्छे संबंध रहे हैं।

लेकिन व्यापार हमेशा से एक चुनौती रहा है। व्हाइट हाउस ने भारत को रूस और चीन के करीब लाया

लंबे समय से अटकी हुई ट्रेड डील नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच तनाव का प्रतीक रही है।

ट्रंप के नेतृत्व में यह सौदा टैरिफ, मार्केट एक्सेस और कृषि से जुड़े विवादों के कारण आगे नहीं बढ़ पाया।

भारत के लिए चुने गए दूत सर्जियो गोर ने साफ कहा कि अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाज़ार अमेरिकी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए खोले।

यह स्पष्ट संकेत है कि ट्रंप अब वैचारिक बहस में नहीं बल्कि सीधे सौदेबाज़ी में रुचि रखते हैं।


भारत के ऑयल इम्पोर्ट क्यों ज़रूरी हैं

भारत दुनिया के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ताओं में से एक है।

जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के चलते देश की तेल की मांग लगातार बढ़ रही है।

इस मांग को पूरा करने के लिए भारत अपना अधिकांश कच्चा तेल आयात करता है।

हाल के वर्षों में रूस भारत का बड़ा सप्लायर बनकर उभरा है।

खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच रूस ने भारत को सस्ते दामों पर तेल उपलब्ध कराया। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था और आम लोगों को राहत मिली।

यह न केवल भारत-रूस संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि अमेरिकी ऊर्जा कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान भी पहुंचाती है।

यही कारण है कि ट्रंप चाहते हैं कि भारत का ऑयल बिज़नेस अमेरिका की ओर मुड़े।


ट्रंप का केवल बिज़नेस वाला दृष्टिकोण

ट्रंप की राजनीति का सबसे स्थायी पहलू यह रहा है कि वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों को व्यवसाय की नज़र से देखते हैं।

भारत के मामले में भी उनका दृष्टिकोण वैसा ही है। उनका स्पष्ट संदेश है—भारत को अमेरिका से ज्यादा तेल खरीदना चाहिए।


मोदी का बैलेंसिंग एक्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह चुनौती बड़ी है। भारत लंबे समय से “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति अपनाता आया है,

यानी किसी एक वैश्विक शक्ति पर निर्भर हुए बिना अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना।

रूस से सस्ता तेल खरीदना आर्थिक मजबूरी रही है, जबकि अमेरिका से संबंध मज़बूत करना रणनीतिक आवश्यकता।

अगर भारत रूस से कुछ आयात घटाकर अमेरिका से तेल खरीदे, तो यह नई ट्रेड, डिफेंस और टेक्नोलॉजी साझेदारी का मार्ग खोल सकता है।

लेकिन इसका उल्टा असर यह भी होगा कि तेल महंगा होगा और मॉस्को के साथ दशकों पुराने संबंधों में खटास आ सकती है।


युद्ध की बातें बनाम असली व्यापार

भारत, रूस और अमेरिका के बीच चल रही ज्यादातर बातचीत युद्ध, गठबंधन और संघर्ष की दिशा में जाती दिखती है।

लेकिन असल सच्चाई यह है कि असली जंग ऊर्जा व्यापार की है।

ट्रंप का संदेश साफ है—यह मामला भू-राजनीति से ज्यादा अर्थशास्त्र का है।

अगर भारत अमेरिका से तेल खरीदता है, तो यह रूस की स्थिति को कमजोर करेगा और अमेरिका की ऊर्जा पकड़ को मजबूत करेगा।


निष्कर्ष

ट्रंप का दृष्टिकोण इसे स्पष्ट करता है। वे चाहते हैं कि भारत रूस की बजाय अमेरिका से तेल खरीदे।

लेकिन भारत के किफ़ायत, पुराने रिश्ते और नए अवसर—इन सबके बीच संतुलन बनाना बेहद कठिन होगा।

लेकिन इतना साफ है कि ट्रंप की दुनिया में युद्ध की बातें केवल परदा हैं—असल मुद्दा है व्यापार।