Home / Religion / उत्तर प्रदेश का एक गाँव जहाँ रावण का दहन नहीं, बल्कि मनाया जाता है शोक। और होती है रावण कि पूजा।

उत्तर प्रदेश का एक गाँव जहाँ रावण का दहन नहीं, बल्कि मनाया जाता है शोक। और होती है रावण कि पूजा।

ग्रेटर नोएडा के पास स्थित बिसरख गाँव उत्तर प्रदेश के बीचोंबीच बसा है। भारत के अन्य हिस्सों की तरह यहाँ तेज धमाकों और रावण दहन का उत्सव नहीं होता। बल्कि यहाँ की परंपरा बाकी जगहों से बिल्कुल अलग है। जहाँ पूरे देश में दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है और रावण के पुतले जलाए जाते हैं, वहीं बिसरख में दशहरा शोक और स्मृति का अवसर होता है। यहाँ के लोग रावण को खलनायक नहीं, बल्कि ज्ञान और भक्ति का प्रतीक मानते हैं।

बिसरख में दशहरा

बिसरख की विरासत: जहाँ हुआ था रावण का जन्म

कहा जाता है कि रावण का जन्म बिसरख गाँव में हुआ था। यह गाँव ऋषि विश्रवा के नाम पर पड़ा, जो रावण के पिता थे और भगवान शिव के भक्त थे। समय के साथ “विश्रव नगर” बदलकर “बिसरख” हो गया। यहाँ आज भी एक प्राचीन शिवलिंग है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसे स्वयं रावण के पिता ने स्थापित किया था।

इतिहासकारों और शिव पुराण के उल्लेख भी इस दावे को बल देते हैं।

गाँव की गलियों, दुकानों और मंदिरों में रावण की छाप आज भी साफ देखी जा सकती है।


बिसरख में दशहरा: रावण दहन नहीं, रावण की स्मृति का पर्व

भारत के अन्य हिस्सों में दशहरा का अर्थ है भगवान राम की विजय और रावण दहन।

लेकिन बिसरख में दशहरा का मतलब है रावण की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।

यहाँ न तो रावण के पुतले जलाए जाते हैं और न ही रामलीला का आयोजन होता है।

यहाँ के लोग मानते हैं कि रावण केवल एक राक्षस राजा नहीं थे, बल्कि एक महान विद्वान, उत्तम प्रशासक और वैदिक ज्ञान के आचार्य भी थे। वे भगवान शिव के परम भक्त और “महाब्राह्मण” थे। इसलिए दशहरा उनके लिए उत्सव नहीं, बल्कि स्मृति और ध्यान का दिन है।


बिसरख का रावण मंदिर और परंपराएँ

बिसरख का रावण मंदिर इस अनूठी परंपरा का केंद्र है। माना जाता है कि यहीं पर रावण का जन्म हुआ था।

दशहरे के दौरान ग्रामीण इस मंदिर में एकत्र होकर भगवान शिव और रावण दोनों की विशेष पूजा करते हैं।

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यहाँ यज्ञ और अनुष्ठान होते हैं, जहाँ रावण की आत्मा की शांति और उनके ज्ञान की स्मृति को सम्मान दिया जाता है।

ग्रामीणों का मानना है कि रावण दहन करना अशुभ हो सकता है, इसलिए यह परंपरा पीढ़ियों से बिना टूटे चली आ रही है।


निष्कर्ष

बिसरख में दशहरा भारत की सांस्कृतिक विविधता का अनूठा उदाहरण है।

जहाँ एक ओर देशभर में दशहरा अच्छाई की जीत का प्रतीक है,

वहीं यह छोटा गाँव रावण की विद्वता और भक्ति को याद कर एक अलग संदेश देता है।

यह हमें याद दिलाता है कि इतिहास हमेशा सीधा-सादा नहीं होता,

और कभी-कभी सबसे निंदित पात्र भी ज्ञान और विरासत की धरोहर छोड़ जाते हैं।

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