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क्या सचमुच फोन पर ज्यादा स्क्रॉल करना दिमाग खराब करता है? एक वास्तविक जीवन झलक

आज की दुनिया में स्मार्टफोन हमारे सबसे करीबी साथी बन गए हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक, हमारी उंगलियां सोशल मीडिया, न्यूज़ अपडेट्स या शॉर्ट वीडियो पर स्क्रॉल करने में लगी रहती हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है: क्या फोन पर ज्यादा स्क्रॉल करना दिमाग खराब करता है? कई डॉक्टर, न्यूरोलॉजिस्ट और आम लोग मानते हैं कि “ब्रेन रॉट” यानी मानसिक थकान, ध्यान की कमी और बेचैनी, स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग करने से होता है।

फोन पर ज्यादा स्क्रॉल करना दिमाग खराब करता है

वैज्ञानिक क्या कहते हैं “ब्रेन रॉट” पर

जब हम लगातार स्क्रॉल करते हैं तो दिमाग को छोटे-छोटे डोपामाइन हिट्स मिलते हैं, जो हमें खुशी या इनाम जैसा एहसास कराते हैं। सोशल मीडिया और वीडियो प्लेटफॉर्म इसी चक्र को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।

समस्या यह है कि तेज़ी से बदलता कंटेंट दिमाग की एकाग्रता को तोड़ देता है।

धीरे-धीरे दिमाग गहराई से सोचने की बजाय सिर्फ त्वरित जानकारी और मनोरंजन चाहता है।

यही आदत लंबे समय में याददाश्त, ध्यान और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।

सीधे शब्दों में कहें तो दिमाग सचमुच नहीं सड़ता, लेकिन फोन पर ज्यादा स्क्रॉल करना दिमाग खराब करता है क्योंकि यह उसकी तीक्ष्णता को कम कर देता है।

वास्तविक जीवन का उदाहरण

रोहन, 25 वर्षीय छात्र, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था। पढ़ाई के बीच उसने सोचा सिर्फ “10 मिनट का ब्रेक” लेकर फोन देख लेता हूं। लेकिन ये 10 मिनट अक्सर 2–3 घंटे के स्क्रॉलिंग मैराथन में बदल जाते थे।

धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि उसकी पढ़ाई में ध्यान कम हो रहा है। जोड़ों और हड्डियों को मजबूत करने वाले शाकाहारी खाद्य पदार्थ

किताब के एक अध्याय पर 15 मिनट से ज़्यादा टिकना मुश्किल हो गया। नींद बिगड़ गई और सोशल मीडिया पर दूसरों की जिंदगी से तुलना करके मन भी उदास रहने लगा।

डॉक्टरों ने बताया कि उसका दिमाग लगातार “नई चीज़ों” की उम्मीद करने लगा था।

मतलब, फोन पर ज्यादा स्क्रॉल करना दिमाग खराब करता है क्योंकि यह उसे विचलन का आदी बना देता है।

कैसे पहचानें कि स्क्रॉलिंग दिमाग पर असर डाल रही है

  • लंबे लेख या किताब पढ़ने में जल्दी बोरियत महसूस होना।
  • स्क्रॉल करते-करते समय का अंदाजा खो देना।
  • रात में देर तक फोन देखने से नींद खराब होना।
  • फोन चेक न करने पर बेचैनी होना।
  • असली जिंदगी की बातचीत डिजिटल कंटेंट जितनी रोचक न लगना।

ये संकेत बताते हैं कि दिमाग पर ज्यादा उत्तेजना का असर हो रहा है।

दिमाग को कैसे बचाएं

अच्छी खबर यह है कि हमारा दिमाग खुद को बदल सकता है। यहां कुछ उपाय हैं:

  • समय सीमा तय करें – फोन की डिजिटल वेलबीइंग सेटिंग्स का उपयोग करें।
  • गहरी एकाग्रता का अभ्यास करें – पढ़ने, लिखने या समस्या हल करने के लिए फोन-मुक्त समय दें।
  • हॉबी अपनाएं – खेल, कुकिंग या बागवानी जैसी गतिविधियाँ करें।
  • माइंडफुल ब्रेक लें – ब्रेक के दौरान टहलें या ध्यान करें।
  • नो-फोन ज़ोन बनाएं – बेडरूम और पढ़ाई की जगह पर फोन न रखें।

निष्कर्ष

तो क्या फोन पर ज्यादा स्क्रॉल करना दिमाग खराब करता है? हाँ, मेडिकल भाषा में यह “ब्रेन रॉट” नहीं है,

लेकिन इसका असर हकीकत है। यह ध्यान, याददाश्त और मानसिक मजबूती को कम कर सकता है।

तकनीक छोड़ने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि उसे समझदारी से इस्तेमाल करना ज़रूरी है।

जैसे जंक फूड शरीर को नुकसान पहुंचाता है, वैसे ही अनियंत्रित स्क्रॉलिंग दिमाग पर असर डाल सकती है।

आख़िरकार सवाल आपसे है: क्या आप अपने फोन को अपनी सोच पर हावी करेंगे, या उसे समझदारी से नियंत्रित करेंगे?