क्यों बढ़ रहे हैं भारत में कैंसर के मामले जबकि चीन में आई कमी (भारत और चीन का कैंसर संकट) ?
कैंसर को लेकर अक्सर यह धारणा बनाई जाती है कि चीन ने कैंसर संकट पर नियंत्रण पा लिया है जबकि भारत में इसकी दर लगातार बढ़ रही है। लेकिन हाल के आंकड़े इस मिथक को तोड़ते हैं। GLOBOCAN 2022 और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (GBD) के अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि भारत और चीन का कैंसर संकट से लड़ाई उतनी सरल नहीं है जितनी दिखाई देती है।

असली आंकड़े क्या कहते हैं
लोगों का मानना है कि भारत की तुलना में चीन में कैंसर कम है, जबकि सच्चाई इसके उलट है।
2022 में चीन में 4.8 मिलियन नए कैंसर मामले सामने आए, जबकि भारत में यह संख्या 1.46 मिलियन रही।
आयु-मानकीकृत दरें और भी चौंकाने वाली हैं – चीन में पुरुषों के लिए यह 209.6 प्रति 1 लाख और महिलाओं के लिए 197.0 है, जबकि भारत में यह क्रमशः 97.1 और 100.8 है।
चीन का आयु-मानकीकृत DALY (डिसेबिलिटी एडजस्टेड लाइफ ईयर्स) 3,469.64 प्रति 1 लाख है,
जबकि भारत का 2,016.32। इसका मतलब है कि चीन कहीं अधिक गंभीर कैंसर बोझ से जूझ रहा है।
भारत का कैंसर बोझ बढ़ रहा है
2022 में यहां 1.46 मिलियन नए मामले आए और यह संख्या 2025 तक 1.57 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है।
इसका अर्थ है कि हर 9 में से 1 भारतीय को जीवनकाल में कैंसर होगा।
सबसे बड़ी समस्या है देर से कैंसर का पता लगना। भारत में केवल 29% कैंसर शुरुआती चरणों में पहचाने जाते हैं।
फेफड़े के केवल 15% और स्तन कैंसर के 33% शुरुआती चरण में पकड़े जाते हैं।
देर से पहचान होने के कारण इलाज मुश्किल हो जाता है और रोगियों की जीवन प्रत्याशा कम हो जाती है।
तंबाकू: एक साझा समस्या
दोनों देशों में तंबाकू का इस्तेमाल व्यापक है, लेकिन अलग-अलग रूपों में।
चीन में धूम्रपान से फेफड़ों का कैंसर सबसे बड़ी समस्या है,
जबकि भारत में स्मोकलेस तंबाकू, गुटखा और सुपारी का सेवन ओरल कैंसर का प्रमुख कारण है।
भारत में 8 साल के बच्चों तक के तंबाकू सेवन करने के मामले सामने आ रहे हैं, जो सामाजिक और सरकारी विफलता को दर्शाते हैं।
अलग-अलग कैंसर प्रोफाइल
चीन में फेफड़ों का कैंसर सबसे आम है, जबकि भारत में मुखगुहा, गर्भाशय ग्रीवा और पाचन तंत्र के कैंसर अधिक पाए जाते हैं।
चीनी महिलाओं में स्तन और थायरॉयड कैंसर आम है,
वहीं भारतीय महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा और डिम्बग्रंथि (ओवरी) कैंसर प्रमुख हैं।
आर्थिक और स्वास्थ्य प्रणाली पर असर
भारत में 2020 में कैंसर के कारण GDP का $11 बिलियन नुकसान हुआ और 2030 तक यह $36–40 बिलियन तक पहुंच सकता है। चीन में यह बोझ और भी अधिक है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी, जागरूकता की कमी और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में कम भागीदारी, दोनों देशों के लिए बड़ी चुनौतियां हैं।
समाधान की राह
कैंसर नियंत्रण के लिए जीवनशैली, पर्यावरणीय कारक और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अहम भूमिका निभाते हैं।
भारत और चीन दोनों को धूम्रपान रोकथाम, कैंसर की जल्दी पहचान और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर ध्यान देना होगा।
यह कहना कि चीन ने कैंसर संकट पर “काबू पा लिया है” गलत है।
सच्चाई यह है कि भारत और चीन का कैंसर संकट से लड़ाई लंबी और कठिन है।
दोनों देशों को मिलकर दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों, जीवनशैली में बदलाव और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार की आवश्यकता है।
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