लाल बहादुर शास्त्री: सादगी, ईमानदारी और जनता की सेवा का प्रतीक
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को सिर्फ़ उनके नेतृत्व के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी ईमानदारी, विनम्रता और सेवा भाव के लिए भी याद किया जाता है। शास्त्री का जीवन आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो सादगी और सत्य को महत्व देते हैं। उन्हें सार्वजनिक सेवा के आदर्श रूप में देखा जाता है।

साधारण शुरुआत और मजबूत मूल्य
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ। वह एक साधारण और गरीब परिवार से थे। शास्त्री बचपन से ही महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सेवा के विचारों से प्रभावित हुए। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया और बाद में अपना उपनाम “श्रीवास्तव” छोड़कर “शास्त्री” रख लिया, ताकि जातिगत भेदभाव का विरोध कर सकें।
अपने जीवन में उन्होंने कई चुनौतियों और जिम्मेदारियों का सामना किया, लेकिन हमेशा शांति और दृढ़ता से उन्हें संभाला। गरीबों के जीवन सुधारने से लेकर सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर काम करते समय उनका मूल चरित्र करुणा और न्याय पर आधारित रहा।
रेल मंत्री के रूप में अविस्मरणीय कहानी
शास्त्री के रेल मंत्री रहने का एक किस्सा उनकी सादगी का उदाहरण है।
उन्होंने मां को नहीं बताया था कि वो रेल मंत्री हैं। कहा था कि — “मैं रेलवे में काम करता हूँ।“
वह एक बार किसी कार्यक्रम में आए थे जब उनकी मां भी वहां पूछते पूछते पहुंची कि मेरा बेटा भी आया है, वह भी रेलवे में है।
लोगों ने पूछा क्या नाम है जब उन्होंने नाम बताया तो सब चौंक गए ” बोले यह झूठ बोल रही है”।
पर वह बोली, “नहीं वह आए हैं”। लोगों ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री जी के सामने ले जाकर पूछा,” क्या वही है?”
तो मां बोली “हां वह मेरा बेटा है” लोग मंत्री जी से दिखा कर बोले “क्या वह आपकी मां है“
तब शास्त्री जी ने अपनी मां को बुला कर अपने पास बिठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।
तो पत्रकारों ने पूछा “आपने उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया“
उनका उत्तर था—”अगर माँ जान लेंगी कि मैं मंत्री हूँ, तो वह लोगों की सिफ़ारिश करने लगेंगी और मैं मना नहीं कर पाऊँगा।“
यह जवाब न केवल उनकी सादगी बल्कि उनके न्यायप्रिय स्वभाव को भी दर्शाता है।
प्रधानमंत्री के रूप में नेतृत्व और योगदान
1964 से 1966 तक प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री ने भारत को कठिन दौर से निकाला।
खाद्य संकट और 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया,
जो आज भी भारत की प्राथमिकताओं का प्रतीक है।
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उन्होंने श्वेत क्रांति की शुरुआत की, जिससे दूध उत्पादन बढ़ा और देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा।
साथ ही उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों और नैतिक शासन पर जोर दिया।
लाल बहादुर शास्त्री की विरासत
लाल बहादुर शास्त्री विनम्रता और ईमानदारी के प्रतीक थे। उनकी माँ से जुड़ा प्रसिद्ध किस्सा दिखाता है
कि उन्होंने कैसे निजी जीवन में भी सादगी और नैतिकता को प्राथमिकता दी।
आज जब राजनीति में स्वार्थ और निजी लाभ अधिक दिखाई देता है, शास्त्री का जीवन हमें याद दिलाता है
कि सच्चा नेतृत्व वही है जिसमें जनता की सेवा और ईमानदारी सर्वोपरि हो।
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